Hindi
गुरुवार, अक्टूबर 05, 2006
हिन्दी और मैं
एक ज़माना हुआ करता था जब मुझे अपनी हिन्दी पर गर्व हुआ करता था लेकिन पिछले कुछ सालों में तो जैसे हिन्दी से नाता ही टूट गया है। पहले कालेज और अब इस महानगरीय जीवनशैली में हिन्दी ही क्या शायद किसी भी भाषा से ईमानदारी नहीं रही।
posted by Parikshit @
11:23 pm
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