Hindi

गुरुवार, अक्टूबर 05, 2006

हिन्दी और मैं

एक ज़माना हुआ करता था जब मुझे अपनी हिन्दी पर गर्व हुआ करता था लेकिन पिछले कुछ सालों में तो जैसे हिन्दी से नाता ही टूट गया है। पहले कालेज और अब इस महानगरीय जीवनशैली में हिन्दी ही क्या शायद किसी भी भाषा से ईमानदारी नहीं रही।

1 Comments:

At 3:38 am, Blogger उन्मुक्त said...

आईये हिन्दी में लिखिये और पुनः नाता जोड़िये

 

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